नमस्कार दोस्तों पढ़ो पढ़ाओ में आपका स्वागत है। आज हम जिस दुनिया में जी रहे हैं उसको डिजिटल वर्ल्ड कहा जाता है और यह इस डिजिटल वर्ल्ड का दायरा इतना बड़ा होता जा रहा है हम उतने ही डिजिटली रूप से असुरक्षित होते जा रहे हैं कभी-कभी आपको सुनने को मिलता है या आप कभी ऑनलाइन फ्रॉड का शिकार भी होते हैं तो आपको यह महसूस होता है कि जिस डिजिटल वर्ल्ड में आप जी रहे हैं उसमें कोई सिक्योरिटी नहीं है तो सरकार ने हमारे लिए आपके लिए एक नया बिल लेकर आई है जिसको डेटा प्रोटक्शन बिल कहा जाता है।
कोई भी कंपनी आपका डेटा चुरा कर किसी को भी दे देती है और आपको फोन आते रहते हैं ऑनलाइन। लेकिन अब इस डेटा प्रोटक्शन बिल में या प्रावधान किया गया है कि आपके बिना मर्जी के आपका डेटा कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता है तो इसी क्रम में भारत सरकार के कैबिनेट में 1 डेटा प्रोटक्शन बिल को मंजूरी दी है आइए इस बिल को समझते हैं इस बिल में क्या है।
यह बिल चर्चा में क्यों है?
Digital personal data protection bill 2022 को हाल ही में केंद्र सरकार के कैबिनेट ने मंजूरी दी है और इस बिल को संसद के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा ताकि यह बिल लोकसभा राज्यसभा और राष्ट्रपति की मंजूरी से कानून का रूप ले सके।
इस बिल की पृष्ठभूमि क्या है?
Digital data protection bill को 2018 में लाया गया था उस समय जस्टिस बीएन कृष्णा के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया जाता है और यह कमेटी बिल का ड्राफ्ट तैयार करने का काम करती है और उस बिल का ड्राफ्ट 2019 में संसद में पेश किया गया लेकिन संसद में पेश करते हुए और चर्चा करते हुए सरकार ने यह पाया कि इसमें कुछ और जोड़ने और संशोधन करने की जरूरत है इसलिए सरकार ने उस समय उस बिल को वापस ले लिया और बताया कि इस बिल को दोबारा से लाया जाएगा। जिसे फिर से कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है।
यह बिल महत्वपूर्ण क्यों है?
- सरकार इस बिल के जरिए भारतीय यूजर्स के डेटा को प्रोटेक्ट कर करना चाहती है।
- सरकार एक डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड का गठन करेगी जो यह तय करेगा कि कहां पर किसके द्वारा यूजर्स के डेटा से छेड़छाड़ किया गया है और समझौता और जुर्माना के माध्यम से हल करने का प्रयास करेगी।
- केंद्र सरकार के पास बोर्ड में किसी को भी शामिल करने और chief executive को नियुक्त करने का अधिकार होगा।
- अगर किसी प्लेटफार्म ने डेटा प्रोटक्शन एक्ट को उल्लंघन करने का प्रयास किया तो इसके लिए डेटा प्रोटेक्शन बोर्ड के पास जाना होगा।
- बोर्ड के पास डेटा प्रोटक्शन एक्ट का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई का पूरा अधिकार होगा।
- बोर्ड के पास जुर्माने लगाने का अधिकार होगा और जुर्माने का राशि तय करने का भी अधिकार होगा।
किस तरह मिलेगा आपके डेटा का कानूनी संरक्षण
- देश के पर्सनल डेटा का संग्रह और उपयोग लीगल तरीके से होना चाहिए।
- यूजर्स के डेटा को मिस यूज करने से बचाने के लिए पारदर्शिता रखी जाएगी यानी अगर आप किसी वेबसाइट या सोशल मीडिया पर अपना अकाउंट बनाते हैं तो आप अपना डेटा उस वेबसाइट या सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को देते हैं तो जिस उद्देश्य से आप वेबसाइट या सोशल मीडिया को अपनी डेटा दे रहे हैं वह केवल उसी उद्देश्य के लिए यूज करेगा ना कि आपके डेटा को किसी भी third party के साथ कोम्प्रोमाईज़ करेगा।
- डेटा का मिनिमाइजेशन – यानी कि जितनी जरूरी है उतना ही डेटा को यूजर्स से लिया जाए ना की सभी डेटा को यूजर से लिया जाए।
- यूजर्स के डेटा के इस्तेमाल के लिए इस्तेमाल करने वाली कंपनियां या इकाइयां की जवाबदेही तय की जाएगी यानी कि अगर किसी कंपनी के पास किसी यूजर्स का डेटा है तो उस कंपनी की जवाबदेही होगी कि उसके पास से यूजर्स का डेटा किसी दूसरे जगह ना जाए। कई बार कंपनी क्या करती हैं कि ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए अपने यूजर्स के डेटा को ही बेचने लगती है और और इसके बदले कम्पनियाँ ज्यादा मुनाफा कमाती जिससे कि यूजर्स के प्राइवेसी पर खतरा बना रहता है।
- डेटा को किसी भी सूरत में शेयर करने बदल देने या नष्ट करने पर इसके लिए जिम्मेदार कानूनों पर 250 करोड़ रुपए के दंड का भी प्रावधान है।
- भारतीय के पर्सनल डेटा को पाकिस्तान समेत किसी भी आतंकी देश के साथ साझा नहीं किया जा सकेगा।
- भारतीयों के पर्सनल डेटा को भारत में ही स्टोरेज करने का भी प्रावधान किया गया है।
- यूज़र के बिना मर्जी के उसके पर्सनल डेटा का उपयोग नहीं किया जा सकेगा।
- बायोमैट्रिक डेटा आंख की पुतली या अंगूठे के निशान को बिना यूजर के परमिशन के नहीं लिया जा सकेगा।
- बच्चे की डेटा को बिना उसके माता-पिता की जानकारी और परमिशन के इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा।
इस विधेयक को लेकर विशेषज्ञ द्वारा क्या चिंता जताई जा रही है?
विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि सरकार और उसके एजेंसियों को व्यापक छूट है यानी कि सरकार और सरकार के एजेंसियों को users के डेटा को इस्तेमाल पर पूरी छूट दी गई।
डेटा संरक्षण बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति में केंद्र सरकार का नियंत्रण है। जो कि पारदर्शिता को प्रभावित करेगा।
मुख्य कार्यकारी की नियुक्ति और सेवा की शर्तें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी। जिससे पारदर्शिता में कमी आएगी।
यह कानून सूचना के अधिकार को प्रभावित कर सकता है इसके तहत सरकारी अधिकारियों के डेटा को पूरी तरह संरक्षित किए जाने की संभावना है।