दवाइयां का हमारे स्वास्थ्य से गहरा कनेक्शन होता है लेकिन यह बात भी सच है कि जब हम फिट रहते हैं तो इसकी कम जरूरत होती है। जब हम डॉक्टर से परामर्श के बाद मेडिकल स्टोर्स पर जाते हैं तो दुकानदार हमें जेनेरिक दवाओं के लिए भी सजेस्ट करते हैं। जेनेरिक दवाएं आमतौर पर ब्रांडेड दवाओं से सस्ते होते हैं लेकिन हमारे मन में यह सवाल उठता है जेनेरिक दवाइयां अच्छी होती है या सस्ती होने का मतलब लो क्वालिटी तो नहीं, ऐसे ही कई सवाल हमारे सामने होते हैं। मेडिसिन जैसे जरूरी टॉपिक पर कांसेप्ट क्लियर हो सके, इसी को लेकर आज का ब्लॉग बेहद महत्वपूर्ण है बने रहीए अंत तक।
मेडिसिन और ड्रग में अंतर
मेडिसिन और ड्रग में अंतर होता है। सभी मेडिसिन ड्रग होते हैं लेकिन सभी ड्रग मेडिसिन नहीं होते है। मेडिसिन नो-एडिक्टिंग होती है वही ड्रग्स एडिक्शन पैदा करती है जिसका हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
अक्सर हम सोचते हैं जेनेरिक दवाएं सस्ती है इसलिए यह कम इफेक्टिव या ब्रांड दावाओं की डुप्लीकेट होती है या फिर उतनी इफेक्टिव नहीं होती जितनी ब्रांडेड दवाएं होती है लेकिन ऐसा नहीं होता है।
Generic medicine क्या है?
जेनेरिक का अर्थ है सामान्य यानी इसका मतलब क्वालिटी का कम होना नहीं है। जेनेरिक दवाएं भी डोज, सेफ्टी, स्ट्रैंथ, क्वालिटी एवं उपयोग में उतनी ही प्रभावि होती है जीतनी की कोई ब्रांडेड दवा। आप चाहे तो ब्रांडेड दवा खरीद सकते हैं या फिर जेनेरिक से ही ठीक कर सकते हैं दोनों का प्रभाव समान होता है। जेनेरिक दावों का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इफेक्ट सेम दाम कम।
जेनेरिक दवाएं सस्ती क्यों होती है?
दवाएं खरीदते समय आपने यह गौर किया होगा की दवाओं पर दो नाम होते हैं पहला एक कंपनी द्वारा दिया जाता है और दूसरा जेनेरिक नाम जो दवा का इनग्रेडिएंट होता है।
जब कोई कंपनी अपनी कोई दवा मार्केट में लॉन्च करती है तो उसके पहले वह एक बड़ी राशि दवा पर रिसर्च एंड डेवलपमेंट यानी अनुसंधान एवं विकास, मार्केटिंग एवं प्रमोशन पर खर्च करती है। कंपनी को एक समय के लिए पेटेंट दिया जाता है जिससे उस दवा को केवल वही कंपनी बना एवं बेच सकती है।
पेटेंट के एक्सपायर होने के बाद अनेक कंपनियां उस दवा को बनाने एवं बेचने के लिए अप्लाई करती है और उस दवा का जेनेरिक वर्जन तैयार करती है इसके बाद मार्केट में भेजती है जिसे जेनेरिक मेडिसिन कहा जाता है।
चुकी किसी कंपनी के पेटेंट एक्सपायर होने के बाद दूसरी कंपनियां उसी इंग्रेडिएंट्स को लेकर दवाएं तैयार करती है जिस पर रिसर्च एंड डेवलपमेंट का कोई खर्चा नहीं होता है इसलिए जेनेरिक दवाएं सस्ती होती है।
भारत दुनिया में जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक है जिसकी सप्लाई अमेरिका, यूरोप एवं अफ्रीका जैसे विकसित देशों में भी की जाती है।
जेनेरिक दवाएं पॉपुलर क्यों नहीं है?
सरकार द्वारा जेनेरिक दवाओं का प्रमोशन किया जाता है ताकि कम दामों में लोगों तक दवाओं की पहुंच को सुनिश्चित किया जा सके लेकिन कहीं ना कहीं यह पब्लिक का इग्नोरेंस है या यूं कहें जेनेरिक दवाओं को लेकर लोगों में अभी भरोसे की कमी है।
सरकार एवं डॉक्टरों द्वारा लोगों को जागरुक कर जेनेरिक दवाओं के विश्वास दिलाने की जरूरत है ताकि कम दामों में भी लोगों की समस्याओं को दूर किया सके।