रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण: क्यों और क्या इसके फायदे | What is Internationalisation of Rupee

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रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण: दुनियाभर में जितना व्यापार होता है और उस व्यापार के लिए हमें मुद्रा की जरूरत पड़ती है और अभी के समय में और पिछले कुछ दशक से जो मुद्रा प्रचलन में है अंतरराष्ट्रीय बाजार में हो है यूएस डॉलर।

यूएस डॉलर की साख दुनिया भर में इतनी ज्यादा है कि दुनियाभर के देश अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए यूएस डॉलर का उपयोग करते हैं और दुनिया भर के देश मुद्रा भंडारण के लिए यूएसए डॉलर का उपयोग करते हैं इसी को देखते हुए दुनिया भर में रुपए के साख को बढ़ाने के लिए रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के लिए भारत सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं आज इस ब्लॉक में समझेंगे की रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण कैसे होगा, क्यों होगा और क्या होंगे इसके फायदे।

रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण क्या है और इसका मतलब (what is internationalisation of rupee)

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत सीमा पार लेनदेन में स्थानीय मुद्रा को बढ़ावा देना शामिल है। यानी कि कोई देश, किसी देश से व्यापार करता है और जो वस्तु और सेवा खरीदता या बेचता है तो उसके बदले जो मुद्रा के लेन-देन करता है वह अपनी मुद्रा में करता है।

साथ ही आयात और निर्यात के लिए रुपए को बढ़ावा दिया जाएगा तथा अन्य चालू खाता लेनदेन के साथ पूंजी खाता लेन-देन में रुपए के उपयोग को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

उदाहरण के तौर पर हम बात करें तो कोई देश जब अंतरराष्ट्रीय व्यापार करता है तो उसका एक BOP (Balance of Payment) होता है। जिसको हिंदी में भुगतान संतुलन कहा जाता है।

भुगतान संतुलन में चालू खाता और पूंजी खाता दोनों होता है:

चालू खाता – वस्तुओं और सेवाओं के आयात और निर्यात से संबंधित लेखा-जोखा होता है।

पूंजी खाता – ऋण और निवेश के माध्यम से पूजी को अपनी सीमा पार लेनदेन करते हैं।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की आवश्यकता क्यों है?

पूरी दुनिया में जितना भी व्यापार होता है उसमें यूएस डॉलर का उपयोग किया जाता है और डॉलर की साख बहुत ज्यादा है इसीलिए डॉलर का वैश्विक विदेशी मुद्रा बाजार के कारोबार में हिस्सा ज्यादा है।

अब आप जानते हैं दुनिया में ग्लोबलाइजेशन के समय में बहुत सारा परिवर्तन आता है जिसमें अमेरिका पर कुछ असर पड़ता है तो डॉलर में भी असर पड़ता है और डॉलर की वैल्यू कम और ज्यादा होती है तो भारतीय मुद्रा की वैल्यू भी कम और ज्यादा होती है तो भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी उसका असर पड़ता है।

अगर अमेरिका के अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव होता है और डॉलर पर असर पड़ता है तो इसके चलते भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है अगर अमेरिका पर पड़ने वाले प्रभाव से भारत पर असर ना पड़े अगर भारत अपने ही मुद्रा में लेनदेन करें।

रुपए के अंतरराष्ट्रीयकरण के लाभ

  • डॉलर की आपूर्ति में बढ़ोतरी होगी।
  • डॉलर पर निर्भरता कम होगी।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रुपए की साख बढ़ेगी।
  • विदेशी मुद्रा भंडार की कमी का सामना कर रहे देशों को एक दूसरा विकल्प मिलेगा।
  • रुपए के मूल्य में वृद्धि से दुनिया भर से निवेश हमारे देश में ज्यादा आएगा।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण में क्या-क्या चुनौतियां हैं?

रुपए के प्रबंधन के लिए अधिक प्रभावी नीतिगत संसाधनों की आवश्यकता होगी।

रुपए के साख को बढ़ाना होगा और दुनिया भर में देशों को रुपए में लेनदेन करने के लिए राजी करना होगा।

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