Uniform Civil Code क्या है? यूनिफॉर्म सिविल कोड के फायदे। जानिए सबकुछ आसान भाषा में

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Uniform civil code in hindi: दोस्तों Uniform Civil Code अचानक से चर्चा में आ गया है क्योकि भारतीय जनता पार्टी 2014 में सत्ता में आयी थी तो उनके मैनिफेस्टो में ये भी था की अगर उनकी सरकार आती है तो Uniform Civil Code लागू करेगी। जिसके बाद आपने देखा की भारतीय जनता पार्टी की सरकार 2 बार सरकार में बहुमत से आयी और उनका Uniform Civil Code वाला वादा अभी तक बाकि है जिसके लेकर सरकार इतनी गंभीर है और 2024 में लोकसभा के इलेक्शन होने वाले है तो जनता के सामने जबाब देना पड़ेगा इसलिए भारतीय जनता पार्टी की सरकार इस मुद्दे को लेकर इतनी गंभीर है।

हालाँकि भारतीय जनता पार्टी ने 2014 इलेक्शन के समय बहुत कुछ वादा किया था जैसे की तीन तलाक, आर्टिकल 370, राम मंदिर ये सभी मुद्दे बहुत ही गंभीर मुद्दे थे जो वर्षो से लंबित थे जिसको बीजेपी ने पूरा किया। अब बारी है Uniform Civil Code की, तो आइये देखते है Uniform Civil Code kya hai, यूनिफॉर्म सिविल कोड का क्या मतलब होता है, समान नागरिक संहिता से क्या लाभ है और भी बहुत कुछ।

सबसे पहले Uniform Civil Code को लेकर हमें नहीं पता की आपकी क्या समझ है और लोगो में क्या समझ है और हमें इस बात की चिंता की देश में बहुत लोगो के पास इस बात को लेकर समझ बहुत ही गलत किस्म की है हम यह बात इसलिए कह रहे है की हमने ट्विटर और फेसबुक पर देखा की लोग इस मुद्दे पर कुछ भी लिख रहे है और बोल रहे है जिसका कोई आधार नहीं है। तो हमारा मकसद ये भी है की इस मुद्दे को ठीक से समझे और जो कोई भी इस आर्टिकल को पढ़े तो इस मुद्दे को लेकर अच्छी समझ हो क्योकि हमारा मानना है की एक अच्छे समाज का निर्माण करना है तो चर्चाओं का स्तर बेहतर होना चाहिए।

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform civil code in hindi)

यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है हिंदी में: एक ऐसा कानून जिसमें विवाह, तलाक, गोद लेने जैसे मामले पर सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू हो। यूनिफॉर्म सिविल कोड में किसी भी धार्मिक ग्रंथों का हस्तक्षेप नहीं होता है।

इसके अलावा यूनिफॉर्म सिविल कोड के माध्यम से न केवल धर्मों के बीच समानता सुनिश्चित की जाती है बल्कि इसके माध्यम से धर्मों के अंदर भी महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता लाने का प्रयास किया जायेगा।

यूनिफॉर्म सिविल कोड को विस्तार में समझने की कोशिश

यूनिफॉर्म सिविल कोड को समझने के लिए सबसे पहले हमें कानून को समझना होगा।

कानून – यह नियम और विधियों का एक समूह होता है जो किसी विशिष्ट क्षेत्र में लागू किया जाता है और इसका प्राथमिक उद्देश्य आम लोगों को न्याय प्रदान करना होता है।

कानून को हम दो श्रेणियों में बांट सकते हैं: 1.) सिविल कानून 2.) अपराधिक कानून

  1. सिविल कानून: दो या दो से अधिक संगठनों या व्यक्तियों के बीच विवादों को सुलझाने की कोशिश की जाती है जिसमें संपत्ति, धन, आवास, तलाक, बच्चों को गोद लेने इत्यादि शामिल होते हैं।

  2. अपराधिक कानून: इस कानून में समाज के खिलाफ हुए अपराधों से संबंधित जिसमें हत्या, रेप, डकैती, आगजनी, इत्यादि शामिल है।

भारत में अपराधिक कानून सभी धर्मों के लोगों और संस्थाओं पर एक समान लागू होते हैं।

लेकिन सिविल मामलों में भारत के सभी कानून, सभी धर्मों के व्यक्तियों पर या संस्थाओं पर एक समान लागू नहीं होते हैं जो व्यक्ति जिस धर्म का होगा उसी धर्म का कानून लागु होगा। इसी को यूनिफॉर्म करने के लिए भारत सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की बात कर रही है।

भारत में अधिकांश विषयों पर सिविल कानूनों में समानता देखने को नहीं मिलती है। भारत का कानून सिविल मामलों में व्यक्ति के धर्म के आधार पर बदल जाता है।

उदाहरण के तौर पर हम देखें तो अगर आप हिंदू हैं और आप दो शादी करना चाहते हैं तो आप नहीं कर सकते क्योंकि हिंदू विवाह अधिनियम में कोई भी व्यक्ति दो शादी नहीं कर सकता है और करता है तो यह कानून का उल्लंघन है।

लेकिन अगर कोई मुस्लिम है और दो शादी करना चाहता है तो उसके ऊपर हिंदू विवाह अधिनियम लागू नहीं होता है उस पर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होता है ठीक उसी प्रकार अगर कोई ईसाई है या बौद्ध है तो उन सब के लिए भी सिविल मामलों में अलग-अलग कानून लागू होता है। और यह केवल विवाह का मामला नहीं है अधिकांश सिविल मामलों में अलग – अलग नियम लागु होते है।

कुछ सिविल मामलों में समान कानून लागू होता है सभी धर्म के लोगों पर यह संस्थाओं पर जैसे कि;

भारतीय अनुबंध अधिनियम, भारतीय साझेदारी अधिनियम, यह सभी धर्म के लोगो और संस्थाओ पर सामान रूप से लागू होते हैं। अधिकांश सिविल मामलों में कानून धार्मिक ग्रंथों के आधार पर लागू होते हैं।

यूनिफॉर्म सिविल कोड का इतिहास

भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड के अवधारणा की उत्पत्ति औपनिवेशिक काल के दौरान हुई थी जब 1835 में ब्रिटिश सरकार द्वारा एक रिपोर्ट पेश की गई। इस रिपोर्ट में मुख्य तौर पर अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित कानूनों में एकरूपता यानी एक समान बनाने पर जोर दिया गया था।

हालांकि इस रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इससे बाहर रखा जाए।

इसके बाद साल 1941 में ब्रिटिश सरकार को लगा की भारत का धार्मिक ढांचा बहुत अधिक जटिल हो गया है और इसी जटिलता को ध्यान में रखते हुए हिंदू कानूनों को संहिताबद्ध करने के लिए बी एन राव समिति का गठन किया गया।

इस समिति ने आजादी के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की और इस रिपोर्ट के आधार पर हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के कानूनों का संहिताकरण किया गया और इस संहिताकरण के बाद हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम पारित किया गया। हालांकि इस अधिनियम में केवल हिंदू और उससे संबंधित धर्म को लिया गया था। बाकी धर्म जैसे कि मुस्लिम ,ईसाई और पारसियों के लिए अलग-अलग कानून लागू रहे।

इस तरह से कहा जा सकता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी कि समान नागरिक संहिता का एक लंबा इतिहास रहा है।

अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता क्या है? और भारतीय संविधान और सर्वोच्च न्यायालय का क्या मत है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र देखने को मिलता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक राज्य समग्र भारतीय क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा।

आपको बता दें कि अनुच्छेद 44 राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (DPSP) का हिस्सा है और दिलचस्प बात यह है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 37 के मुताबिक गैर प्रवर्तनीय है यानी कि न्यायपालिका के माध्यम से इसे लागू नहीं किया जा सकता है।

हमारे भारतीय संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करने की गारंटी नहीं दी गई है।

न्यायपालिका ने अपने निर्णय में समय-समय पर समान नागरिक संहिता का जिक्र किया है और इसे लागू करने के लिए भारत सरकार को निर्देश भी दिए हैं।

उदाहरण के तौर पर देखे तो शाहा बानो विवाद (1985): सर्वोच्च न्यायालय ने शाहा बानो विवाद का फैसला सुनाते हुए संसद को समान नागरिक संहिता पारित करने का आदेश दिया था।

यूनिफॉर्म सिविल कोड के फायदे?

यूनिफॉर्म सिविल कोड के माध्यम से संवेदनशील वर्ग का संरक्षण किया जा सकेगा।

जब भारतीय संविधान का निर्माण हो रहा था तो संविधान सभा में प्रमुख संविधान निर्माताओं में से एक डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान के अनुच्छेद 44 का जिक्र करते हुए कहा था कि अनुच्छेद 44 का उद्देश्य महिलाओं समेत अन्य संवेदनशील वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है इस अनुच्छेद के माध्यम से राष्ट्रवादी भावना को भी विकसित किया जा सकेगा।

हम सभी जानते हैं कि भारत में धर्म के आधार पर जो भी कानून लागू किए गए हैं इसमें महिलाओं को ज्यादा अधिकार नहीं दिए गए हैं और हमें देखने को मिलता है कि भारत में प्राचीन समय से ही महिलाओं के अधिकार के साथ हमेशा से भेदभाव किया जाता रहा है और जब भारत में एक समान कानून लागू होगा (Uniform civil code) तो इसकी वजह से महिलाओं और पुरुषों के अधिकार बराबर होंगे।

कानूनों का सरलीकरण: हम जानते हैं कि भारत में अलग-अलग धर्मों जैसे की हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी इत्यादि धर्म के लिए सिविल मामलों में अलग-अलग कानून है जैसे की शादी, बच्चों की गोद से संबंधित नियम, तलाक, विरासत, उत्तराधिकार से संबंधित नियम बहुत ही जटिल है जिसको समझने में आम लोगों को बहुत परेशानी होती है।

समान नागरिक संहिता के माध्यम से इन कानूनों का सरलीकरण किया जाएगा जिससे कि सभी लोग अपने अधिकार से रूबरू हो सके और बेहतर समझ हो।

और व्यक्तिगत कानून देश के विकास में बाधा साबित होती है। हम अगर विकसित देशों की बात करें तो उन देशों में व्यक्तिगत कानून नहीं है।

व्यक्तिगत कानून जो अभी लागू है हमारे देश में, यह तर्कहीन मान्यताओं पर आधारित होते हैं। यह समय के साथ समाज और देश के विकास में बाधा होते हैं।

समान नागरिक संहिता के माध्यम से पुराने समय से चली आ रही कुप्रथाओं को समाप्त करने में आसानी होगी।

इसके अलावा यह भी माना जाता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से न्यायालय पर बोझ कम होगा।

बीते दिनों एक रिपोर्ट जारी की गई थी इसमें बताया गया था कि:

  • भारत के उच्च न्यायालयों में 4.64 मिलियन मामले
  • और जिला में न्यायालयों में 31 मिलियन मामले लंबित है।

इसका मुख्य कारण यह है कि पर्सनल ला काफी जटिल है जिसके कारण कानूनों का सही ढंग से पालन कराने में बहुत लंबा समय लग जाता है। और यदि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाता है तो कानून सरल हो जाएंगे और समय भी कम लगेगा न्यायालय का समय बचेगा और लोगों का भी समय बचेगा और सरकार के पैसे भी खर्च कम होंगे और संसाधन कम लगेंगे।

यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने में क्या-क्या चुनौतियां हैं?

यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए सरकार को बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

इस संबंध में सबसे पहला चैलेंज यही है कि इस तरह की अवधारणा को भारत में संवैधानिक प्रावधानों का विरोधाभासी माना जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 में भारत के सभी नागरिकों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म को अबाध रूप से मानने का अधिकार दिया गया है।

इसके अलावा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 में सभी धर्मों को अपने धार्मिक मामलों को प्रबंधित करने का अधिकार दिया गया है।

ऐसे में यदि भारत सरकार समान नागरिक संहिता लागू करती है तो इसे जाहिर तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 और अनुच्छेद 26 का उल्लंघन माना जाएगा।

और यदि भारत सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करती है तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 और अनुच्छेद 26 में संशोधन करना पड़ेगा जो कि एक बहुत ही जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य है।

देश की विविधता के लिए खतरा:

हम जानते हैं कि भारत में अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं जिनकी अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं हैं और अलग अलग सिद्धांत है।

ऐसे में इन सभी लोगों को एक ही नजरिए से देखने से भारत की विविधता के समक्ष खतरा उत्पन्न होगा और इसी खतरे को ध्यान में रखते हुए साल 2018 विधि आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को पूरी तरह से नकार दिया था क्योंकि विधि आयोग का मानना था कि यदि इस संहिता को जमीनी स्तर पर लागू किया जाएगा तो देश की विविधता के समक्ष खतरा उत्पन्न होगा।

इसके अलावा एक चुनौती यह है कि इस पूरी अवधारणा को अल्पसंख्यकों के बीच अपनी पहचान खो देने का डर पैदा होगा।

और यह सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य होगा की देश के अल्पसंख्यकों का भरोसा जीतना की यह कानून उनके लिए भी बेहतर है।

अगर हमारा यह Information आपको अच्छा लगा हो तो अपना feedback जरूर दे और अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप कमेंट करके पूछ सकते हैं।

धन्यवाद!!

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