ताज़ा अपडेट: पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया बड़ा फैसला

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हाल ही में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस हिरासत को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला लिया है और इस निर्णय के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने साल 1992 के एक दूसरे निर्णय को पूरी तरह से पलट दिया गया है जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिया गया निर्णय चर्चा में आ गया है। ऐसे में न्यायिक हिरासत और पुलिस हिरासत को समझना बहुत जरुरी हो जाता है।

तो आज के ब्लॉग में हम इसी ब्लॉग पर पूरा विस्तार से चर्चा करने की कोशिश करेंगे।

पुलिस हिरासत से जुड़ा कानून?

पुलिस हिरासत से जुड़े कानून का प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 167 के अंतर्गत किया गया है। इसके अंतर्गत पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो जांच के लिए 24 घंटे तक रख सकती है और पुलिस के लिए अनिवार्य होता है की 24 घंटे की समय सीमा खत्म होने के बाद उस व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है।

अगर हम CrpC की धारा 167 (2) को देखे तो यह पता चलता है की अगर अतिरिक्त जांच की आवश्यक्ता पड़ती है तो अतिरिक्त जांच के लिए उस व्यक्ति को पुलिस हिरासत में भेजा जा सकता है लेकिन पुलिस के पास कस्टडी में भेजने का जो अधिकार प्राप्त है इससे सम्बंधित अधिकार केवल उस जिले के मजिस्ट्रेट को प्राप्त है और उस जिले का मजिस्ट्रेट के विवेकाधिकार के ऊपर निर्भर करता है की उस व्यक्ति को पुलिस हिरासत में भेजा जाना चाहिए की नहीं भेजा जाना चाहिए।

इसके अलावा अगर हम पुलिस हिरासत की अवधि की बात करे तो अगर मजिस्ट्रेट पुलिस हिरासत में रखने के लिए आदेश दे भी देता है तो 15 दिन से ज्यादा की अवधि के लिए पुलिस हिरासत में नहीं भेजा जा सकता है।

अब यहाँ पर सवाल हो सकता है की अगर 15 दिनों के भीतर भी जांच पूरी नहीं हो पाती है तो क्या होगा तो इसका भी प्रावधान CrPC की धारा 167 में किया गया है और अगर पुलिस 15 दिनों में भी जांच पूरी नहीं पाती है तो न्यायिक हिरासत का प्रावधान किया गया है। अगर मामला अपराध का हो तो न्यायिक हिरासत 60 दिनों का हो सकता है और मामला अगर गंभीर अपराध का तो न्यायिक हिरासत 90 दिनों का हो सकता है।

पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में अंतर

पुलिस हिरासत पुलिस के अधीन होती है और न्यायिक हिरासत न्यायालय के अधीन होती है।

पुलिस हिरासत के दौरान जांच की प्रक्रिया होती है वो पुलिस स्टेशन के अंदर की जाती है और न्यायिक हिरासत मजिस्ट्रेट के अधीन रहकर की जाती है।

पुलिस हिरासत में आरोपी व्यक्ति से जो सवाल पूछे जाते है पुलिस स्टेशन में पूछे जाते है जबकि न्यायिक हिरासत में आरोपी व्यक्ति को केंद्रीय कारागार में बंद किया जाता है और उसी में पूछताछ होती है।

इसके सम्बन्ध में एक प्रावधान ये भी है की अगर किसी व्यक्ति की मजिस्ट्रेट द्वारा न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है न्यायिक हिरासत के दौरान पुलिस अधिकारी उस व्यक्ति से तब तक जांच या पूछताछ नहीं कर सकते है जब तक उस जिले के मजिस्ट्रेट से जांच की अनुमति प्राप्त न कर ले।

अपवाद: इसके अलावा भारतीय कानून में पुलिस हिरासत का एक अपवाद भी है:

अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ अगर अलग-अलग मामलो में अलग-अलग FIR दर्ज की गई हो तो पुलिस उन सभी FIR को आधार बनाते हुए व्यक्ति को लम्बे समय तक पुलिस हिरासत में रख सकती है।

हिरासत की अवधि समाप्त होने के बाद क्या होता है?

पहले हमने आपको बताया की अगर पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो केवल 24 घंटे ही अपने पास रख सकती है उसके बाद मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है और यदि मजिस्ट्रेट आगे की जांच के लिए अनुमति देता है तो 15 दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेजा जा सकता है उसके बाद की प्रक्रिया में मजिस्ट्रेट न्यायिक हिरासत में भेजता है जो की 60 या 90 दिनों का होता है।

उसके बाद सवाल यह है की पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत की अवधि समाप्त हो जाती है लेकिन फिर भी जांच पूरी नहीं होती है तो क्या होगा? यदि पुलिस को जांच के लिए जो समय मिला है उस समय में भी जांच पूरी नहीं हो पाती है तो उस व्यक्ति को वैधानिक जमानत का अधिकार प्राप्त होता है। यानि की व्यक्ति को स्वतः ही जमानत मिल जाती है।

सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है?

सुप्रीम कोर्ट ने साल 1975 के मातावार परिदा बनाम उड़ीसा राज्य के फैसले में कहा था की पुलिस 60 से 90 दिनों की अवधि के भीतर अगर जांच की प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाती है तो ऐसे स्थिति में गंभीर और वीभत्स अपराध करने वाले व्यक्ति को भी जमानत मिलने के अधिकार प्राप्त हो जाता है।

सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय क्या है?

हाल ही में एक नया केस सामने आया है विकास मिश्रा नाम के एक व्यक्ति को भष्टाचार के आरोप में सीबीआई ने अपने हिरासत में लिया था लेकिन हिरासत में लेने के 2 दिन बाद ही व्यक्ति बीमार हो गया और हॉस्पिटल में भर्ती हो गया। कोर्ट ने 15 दिनों के पुलिस हिरासत में भेजा था लेकिन व्यक्ति बीमार होने के कारण पुलिस जांच नहीं कर सकी।

सीबीआई ने फिर से एक याचिका दायर की और फिर से पुलिस हिरासत के लिए परमिशन माँगा ताकि जांच पूरी हो सके। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए व्यक्ति को 4 दिनों के पुलिस हिरासत में भेज दिया। इसपर विकाश मिश्रा के वकील ने 30 साल पुरानी एक नजीर का उदाहरण देते हुए फिर से पुलिस हिरासत में भेजने का विरोध किया लेकिन सुप्रीम ने अपना फैसला सुनाते हुए 4 दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया है।

इस तरह सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय ने 30 साल पुराने अपने ही फैसले को पलट दिया है और एक विरोधाभास पैदा हो गया है हालाँकि दोनों ही निर्णय 2 जजों के बेंच ने लिए है। जानकारों का कहना है की 2 से ज्यादा जजों की बेंच द्वारा विचार किया जाये और स्‍पष्‍टता लाया जाये।

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