संसद का विशेष सत्र क्या है और यह अन्य सत्रों से क्यों होता है अलग?

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पढो पढ़ाओ में आपका स्वागत है जैसा कि आप जानते हैं कि भारत की राजधानी दिल्ली में 7 सितंबर 2023 से G-20 शिखर सम्मेलन शुरू होने वाला है और इस सम्मेलन के बाद राजधानी दिल्ली में एक और आयोजन होने वाला है जो कि है संसद का विशेष सत्र का आयोजन। आज हम इन्हीं सभी विषयों का चर्चा करने वाले हैं जो की बहुत ही महत्वपूर्ण है।

संसद का विशेष सत्र

हमारे देश की राजधानी दिल्ली में संसद का विशेष सत्र का आयोजन किया जा रहा है जो कि 18 से 22 सितंबर 2023 तक आयोजित किया जाएगा और यह 17वीं लोकसभा का 13वां विशेष सत्र बुलाया गया है और इसके अलावा राज्यसभा की बात करें तो यह 261वां सत्र है जो कि राज्यसभा की बैठके भंग नहीं होती है इसलिए लगातार इसकी संख्या में बढ़ोतरी होती है।

संसद का स्वरूप:

संसद के तीन भाग हैं लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति।

इसके अलावा लोकसभा और राज्यसभा में संसद के विशेष सत्रो के आयोजन की प्रक्रिया होती है। तथा संसद की प्रक्रिया में भाग लेने का काम राष्ट्रपति का नहीं है।

संविधान में प्रावधान:

अनुच्छेद-85 के अनुसार हमें पता चलता है कि हमारे देश में जो संसद है वहां पर सत्रों का आयोजन होगा। हालांकि भारत का कोई भी संसदीय कैलेंडर नहीं है जिसमे लिखा हो की संसद का सत्र तय समय पर होगा। हालाँकि संविधान में कुछ शर्ते भी दी गई है संसद सत्र को लेकर, शर्त यह है की संसद का सत्र वर्ष में कम से कम दो बार होनी चाहिए और हमारे देश में संसद सत्र का आयोजन तीन बार होता है लेकिन कम से कम दो बार होना चाहिए और दो सत्रों के बीच की जो अवधि है वो छह माह से अधिक नहीं होता है यानी कि संसद सत्र का आयोजन 1 वर्ष के अंदर होना चाहिए।

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संसद के एक वर्ष में तीन सत्र होते हैं

इसके अलावा संविधान में प्रावधान कि बात करें तो सबसे पहले इसमें वजट सत्र जो कि पहला सत्र है और यह जनवरी के अंत में शुरू होता है तथा यह अप्रैल के अंत या मई के पहले सप्ताह तक समाप्त हो जाता है।

इसके अलावा इस सत्र में एक अवकाश होता है ताकि संसदीय समितियां बजटीय प्रस्तावों पर चर्चा कर सकें।

इसके अलावा दुसरा सत्र मानसुन सत्र है जो कि जुलाई माह से अगस्त माह तक तीन सप्ताह तक चलता है।

तथा इसके अलावा तीसरा सत्र है शीतकालीन सत्र जो कि नवंबर से दिसंबर तक चलता है।

संसद का विशेष सत्र:

संविधान के अनुच्छेद 85(1) में यह उल्लेख देखने को मिलता है कि तीन सामान्य सत्रों के अलावा जरूरत पड़ने पर संसद का विशेष सत्र भी बुलाया जा सकता है। यानी कि विशेष मुद्दे पर अगर निर्णय लेना हो या कोई विशेष बिल पास करना हो तो केन्द्र सरकार यह सत्र बुला सकती है। इसके अलावा राष्ट्रपति ऐसी स्थिति में संसद के प्रत्येक सदन का सत्र बुलाने का अधिकार देता है।

कौन तय करता है की सत्र कब बुलाया जाएगा?

सबसे पहले जब केंद्र सरकार को यह महसूस होता है की कोई जरुरी बिल पर चर्चा और कानून बनाना चाहिए और यह तय सरकार करती है और सरकार में एक समिति होता है जो संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति है जो तय करती है कि साल में कौन-कौन से सत्र बुलाया जाएगा तथा इसके अलावा रक्षा मंत्री, गृह मंत्री, और कानुन सहित नौ अन्य मंत्री भी इसमें शामिल हैं। और इसके बाद भारत का राष्ट्रपति औपचारिक सहमति देता है।

कब-कब बुलाया गया है विशेष सत्र?

जून 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू करने के लिए।

जुलाई 2008 में विश्वास मत हासिल करने के लिए लोकसभा का विशेष सत्र आयोजन किया गया था।

अगस्त 1997 में आजादी के 50 वर्ष के अवसर पर संसद का छह दिनों का विशेष सत्र आयोजन किया गया था।

इसके अलावा अगस्त 1992 में भारत छोड़ो आंदोलन के 50 वर्ष पुरे होने पर मध्य रात्रि का सत्र आयोजन किया गया था।

तथा जून 1991 में हरियाणा में राष्ट्रपति शासन की मंजूरी के लिए लेकिन इस बीच लोकसभा भंग हो गई थी इसलिए उच्च सदन की बैठक हुई जिसमें राष्ट्रपति शासन की मन्जुरी मिल गई।

फरवरी 1977 में तमिलनाडु और नागालैंड में राष्ट्रपति शासन के विस्तार के लिए राज्य सभा का एक विशेष सत्र का आयोजन किया गया था।

इसके अलावा अगस्त 1972 में आजादी की रजत जयंती पर विशेष सत्र का आयोजन किया गया था।

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