छुक छुक करती रेलगाड़ी से लेकर हाई स्पीड बुलेट ट्रेन के विकास का सफर बहुत ही रोमांचक है। रेलगाड़ियां मानव की दैनिक गतिविधियों का एक अभिन्न हिस्सा है। करोड़ों लोग हर रोज रेल से सफर करते हैं। रेलगाड़ी के जरिए लंबी दूरी को कम समय एवं किफायती दामों में सफर करना लोगों के लिए काफी रोमांचक सफर रहा है। क्या आपने सोचा है की करोडों लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाले रेलगाड़ियों के आविष्कार एवं इसके विकास का इतिहास क्या है? रेलगाड़ियों से सफर करना जितना रोमांचक लगता है इसके अविष्कार एवं इतिहास की कहानी भी उससे कहीं ज्यादा दिलचस्प है। आज विश्व के कोने कोने में रेलगाड़ियों की पहुंच है इसके लिए पहाड़ों को काटकर एवं नदी के ऊपर पूल बनाकर रेलगाड़ियों के रास्तों को स्वतंत्र बनाया गया है। भारत के जम्मू कश्मीर में दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज चिनाब नदी पर स्थित है जहां से प्राकृतिक नजारे स्वर्ग की अनुभूति करवाते हैं।तो आइए चलते हैं छुक छुक करती रेलगाड़ी से लेकर बुलेट ट्रेन के सफर पर।
रेलगाड़ी का इतिहास
18 वीं शताब्दी के दौरान यूरोप में नए-नए अविष्कार हो रहे थे। लोग अब केवल खाने पीने के अलावा नए-नए चीजें ढूंढने में रुचि ले रहे थे। 1976 में जेंम्स वाट के द्वारा स्टीम इंजन के अविष्कार से बहुत बड़ा बदलाव आया। स्टीम इंजन के अविष्कार के बाद वैज्ञानिकों के मन में बिना घोड़ा गाड़ी से चलने वाले वाहन का ख्याल आया। 18 वीं शताब्दी के शुरुआत से ही इंजीनियरों ने बिना घोड़ा गाड़ी से चलने वाले वाहन बनाने में जुट गए लेकिन जेम्स वाट द्वारा स्टीम इंजन का अविष्कार उनके लिए काफी फायदेमंद रहा। इसके पहले गाड़ी केवल जानवरों द्वारा ही खिंची जाती थी। रेलवे के अविष्कार की कहानी बहुत ही रोचक है। अलग-अलग समय में अलग-अलग लोगों ने इस अविष्कार में योगदान किए हैं। हालाँकि, Richard Trevithick ने दुनिया के पहले ट्रेन का अविष्कार किया था। आमतौर पर बिना घोड़ा गाड़ी से चलने वाले वाहनों के अविष्कार में Richard trevithic, Matthew Murray, George steeepcsim, और oliver evans का नाम आता है।
प्रथम प्रयास
पहली बार 1769 में फ्रांसीसी सेना के इंजीनियर निकोलस ने भाप से चलने वाले गाड़ी बनाई। यह दुनिया की पहली बिना जानवरों के चलने वाली गाड़ी थी। लेकिन यह गाड़ी बहुत ज्यादा शोर करती थी एवं इससे चिंगारियां भी निकलती थी। यह गाड़ी वजन में बहुत ज्यादा थी एवं घोड़ा गाड़ी से खर्चीला भी थी। पहली बार चलाने के बाद इसके चक्के टूट गए और ज्यादा उपयोगी ना होने के कारण शस्त्रागार में डाल दिया गया।
दूसरा प्रयास
Richard trevithic जिन्हें रेलगाड़ी का जन्मदाता कहा जाता है। ये एक युवा मैकेनिकल इंजीनियर थे एवं बिना जानवरों से चलने वाले गाड़ी बनाने के लिए काफी प्रयास किया। सन 1801 में इनके प्रयास सफल हुए और इन्होंने लोहे की एक गाड़ी बनाई जिनमें धुएं के लिए चिमनी थी एवं लोगों को बैठने के लिए जगह भी थी। जब पहली बार इस गाड़ी को चलाया गया तो बहुत ज्यादा शोर देखने को मिला एवं चलने के साथ-साथ यह हिलती डुलटी भी थी इसलिए इसे छुक छुक करने वाली गाड़ी नाम दिया गया। जब पहली बार इसको पटरी पर चलाया गया तो लोग डर गए । कुछ दूरी चलने के बाद कोयले की आग से इंजन में आग लग गई और गाड़ी पूरी तरह से चल गई। Richard trevithic ने हार नहीं मानी और फिर 1803 में दूसरा प्रयास किया। दूसरे प्रयास में कर्नवाल से लंदन तक इस गाड़ी को चलाया गया लेकिन इस बार भी इसके इंजन को काफी नुकसान हुआ। इस प्रयास के बाद Richard trevithic ने गाड़ी को केवल पटरी पर चलाने के लिए सोचा। यह पहला पहला मौका था जब गाड़ी को पटरी पर चलाया गया लेकिन महंगा और खर्चीला होने के कारण किसी भी कंपनी ने इसको आगे बढ़ाने के लिए नहीं सोचा।
तीसरा प्रयास
Matthew Murray एक नए सोच के इंजीनियर एवं व्यापारी थे। 1812 में इन्होंने Richard trevithic के रेलगाड़ी में बदलाव कर चलाना शुरू कर दिया। उस समय रेलवे इतना ज्यादा प्रचलित नहीं था रेलवे का उपयोग केवल व्यापार में माल ढोने के लिए किया जाता था। Matthew Murray ने रेल की पटरी बिछाने पर ज्यादा जोर दिया।
चौथा प्रयास
George Stephenson ने कोयले के इस्तेमाल से चलने वाली रेलगाड़ी को पूरी दुनिया में पहुंचाने का काम किया। भाप इंजन में बदलाव कर इसे और शक्तिशाली बनाया गया जो भारी इंजन को खींचने में सक्षम थी। 27 सितंबर 1825 को भाप इंजन से 38 डिब्बों वाली रेलगाड़ी को पटरी पर खींचा गया जिसमें 600 यात्री सवार थे। यह ट्रेन लंदन से Stockton के बीच 37 मील तक चलाया गया था। इसकी रफ्तार 14 मील प्रति घंटा थी। आधिकारिक रूप से George Stephenson के सुधार एवं रेलवे के विकास को पूरी दुनिया में मान्यता दी गई। इनके बाद oliver evans जो एक अमेरिकी इंजीनियर थे उन्होंने भाप इंजन में बदलाव कर हाई प्रेशर भाप इंजन का निर्माण किया।
पांचवा प्रयास
Rudolf Karl diesel ने 1897 में डीजल इंजन का आविष्कार कर रेलवे के विकास में एक चमत्कारिक परिवर्तन कर दिया। आज भी पूरी दुनिया में डीजल इंजन से चलने वाली रेलगाड़ियों का उपयोग किया जाता है।
भारत में रेलगाड़ी का इतिहास
आज भारत के किसी भी कोने में सफर करना रेलगाड़ी के जरिए काफी आसान हो गया है। रेलगाड़ी भारत की एक बुनियादी जरूरत बन गई है और इसमें लगभग 15 लाख कर्मचारी काम करते हैं। भारत में पहली रेलगाड़ी 16 अप्रैल 1853 को मुंबई से थाने के बीच 35 किलोमीटर चलाई गई जो 20 डब्बो वाली गाड़ी थी और उसमें लगभग 400 यात्री सवार थे।
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