Mystery of Titanic: आखिर Unsinkable जहाज कैसे डूब गया। TITANIC के बारे में पूरी कहानी

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Mystery of Titanic: 10 अप्रैल 2012 के दिन, RMS TITANIC, दुनिया का सबसे बड़ा और luxurious जहाज अपने पहले सफर पर इंग्लैंड के Southampton बंदरगाह से न्यूयॉर्क की ओर निकल पड़ता है। इस जहाज में बड़े-बड़े businessman, actor और migrants (अपने जीवन के बेहतरी के लिए)  शामिल होते हैं। टाइटेनिक को चलाने के लिए 62 साल के सीनियर कैप्टन Edward Jones Smith तथा उनके साथ क्रू मेंबर को जिम्मा सौंपा गया। टाइटेनिक उस समय की सबसे बड़ी और luxurious जहाज थी, जिसकी लंबाई 269 मीटर और ऊंचाई लगभग 50 मीटर से अधिक थी। टाइटेनिक को बनाने में  7.5 मिलियन डॉलर खर्च किया गया था। अगर आज के समय से इसकी तुलना करें तो ये राशि लगभग 400 मिलियन डॉलर के बराबर होगी। सुविधा के हिसाब से देखा जाए तो टाइटैनिक एक five star hotel की तरह डिजाइन किया गया था इसमें स्विमिंग पूल, लग्जरियस बाथरूम, दो बड़े बड़े रेस्टोरेंट्स, लाइब्रेरी आदि तमाम सुविधाएं मौजूद थीं। टाइटेनिक के खूबियों को बताने के लिए पूरी दुनिया में मीडिया के द्वारा प्रचारित किया गया था। टाइटेनिक को बनाने वाली कंपनी white star line ने दावा किया था कि यह जहाज unsinkable है यानी यह कभी नहीं डुब सकती। टाइटेनिक में लंबाई के हिसाब से 16 कंपार्टमेंट बनाए गए थे। अगर किसी भी तरह से 4 कंपार्टमेंट में पानी घुस जाए तो कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला था।

10 अप्रैल 1912 को टाइटेनिक इंग्लैंड से रवाना होती है। उस समय उसको देखने के लिए बंदरगाह पर करीब करीब 1 लाख लोग आए थे। रवाना होने के दो दिनों बाद यानी 12 अप्रैल 1912 को Ice warning मिलने लगती है। चुकी न्यूयॉर्क के रास्ते में iceberg यानी बर्फ के पहाड़ मिलते हैं। समुद्र से गुजरने वाले जहाज रेडियो के माध्यम से अपने आसपास के जहाजों को बर्फ के पहाड़ों के बारे में सूचित करते रहते हैं और सावधान होने के लिए चेतावनी देते हैं। इन चेतावनी के बाद टाइटेनिक अपना रास्ता तो बदलती है लेकिन स्पीड को कम नहीं करती है और 40 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलती जाती है।

2 दिन बाद यानी 14 अप्रैल 1912 को अन्य जहाजों द्वारा बर्फ के पहाड़ होने की टाइटैनिक को 7 बार चेतावनी दी जाती है लेकिन कैप्टन और उनके मेंबर्स द्वारा इस चेतावनी को ignore कर दिया जाता है और वे स्पीड कम नहीं करते हैं। धीरे-धीरे सूरज ढल जाता है और रात हो जाती है। उस दिन की सबसे खास बात यह थी कि चांद बाहर नहीं आया था और रात काली हो गई थी। जहाज के आगे की तरफ थोड़ी ऊंचाई पर एक lookpoint होता है जिस पर बैठकर आगे का रास्ता देखा जाता है। lookpoint पर बैठकर ठंड का सामना करना और आगे देखना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि हवाओं की गति से आंखों से आंसू निकलने लगते हैं और साफ दिखाई नहीं देता है।

Fredrick fleet नाम का एक मेंबर लुक पॉइंट पर बैठे हुए हैं और रात के 11:39 बज रहे हैं। अचानक से उनको एक बर्फ का पहाड़ दिखता है वह तीन बार घंटी को बजाते हैं और फोन कॉल लगाकर चिल्लाते हैं। उनके नीचे बैठा मेंबर जहाज को मोड़ देने के लिए चिल्लाता है और जहाज को मोड़ने की कोशिश की जाती है तब तक बहुत देर हो गई होती है।

रात को 11:40 में टाइटेनिक बर्फ के पहाड़ से दाएं तरफ से टकरा जाता है। यह बर्फ का पहाड़ छोटा-मोटा नहीं था बल्कि एक फुटबॉल के फिल्ड जितना बड़ा था और इसका वजन 1.5 मिट्रिक टन से भी ज्यादा था। बर्फ के पहाड़ से टाइटेनिक 10 सेकंड रगड़ता हुआ आगे बढ़ जाता है लेकिन तब तक उसमें छोटे-छोटे होल्स हो गए। अब आप ये सोच रहे होंगे कि ये कैसे संभव है, बर्फ से मेटल को क्या खतरा हो सकता है। हम जानते हैं कि लकड़ी मेटल को नहीं काट सकती लेकिन जब पेड़ से कोई कार टकरा जाती है तो कार के परखच्चे उड़ जाते हैं वैसा ही यहां पर भी हुआ।

बर्फ के पहाड़ से टक्कर होने के बाद कैप्टन स्मिथ और जहाज के आर्किटेक्ट thomos andhrew जानने की कोशिश करते हैं की जहाज को कितना चोट पहुंचा हैं। जांच करने के बाद उन्हें पता चलता है की कभी न डूबने वाला जहाज डूब जाएगा और इसे डूबने से बचाया नहीं जा सकता है। अगर 16 कंपार्टमेंट में से 4 में पानी भर जाता तो कुछ नहीं होता लेकिन जहाज के 6 कंपार्टमेंट में पानी भर गए थे। 12:00 बजे से डिस्ट्रेस कॉल करना शुरू कर दिया गया और बाकी के लोग रॉकेट और पटाखे छोड़ने लगे कि अगर कोई आस-पास जहाज हो तो बचाव के लिए आ जाए। 12:20 में RMS Carpathian नामक एक जहाज के पास signal पहुंचा जो टाइटेनिक से लगभग 137 किलोमीटर दूर था। उसने अपना रास्ता मोड़ लिया लेकिन टाइटेनिक तक पहुंचते-पहुंचते उसको 3 से 4 घंटे लग जाते। 12:00 बजे के बाद से lifeboat, जो जहाजों में आपातकालीन सेवाओं के लिए रखी जाती है, से यात्रियों को टाइटेनिक से बाहर निकालना शुरू कर दिया जाता है। प्रोटोकॉल के तहत सबसे पहले औरतों और बच्चों को lifeboat में बिठाया जाता है लेकिन passengers में इस बात का विश्वास था की जहाज iceberg से टकराया जरूर है लेकिन यह unsinkable है और डूबेगा नहीं। पहली बार में 65 लोगों की capacity वाले लाइफबोट में केवल 28 लोग में सवार हुए। 1:00 बजे के बाद से जहाज का आगे वाला हिस्सा डूबने लगा और पीछे वाला हिस्सा ऊपर की तरफ उठने लगा। जहाज में चारों ओर हड़बड़ी मच गई और अब लोग lifeboat में चढ़ने के लिए भाग दौड़ करने लगे। टाइटैनिक के पास कुल 20 lifeboat थी जिसमें 1200 से अधिक लोग आराम से जा सकते थे लेकिन 2200 लोगों मे से लगभग 700 लोग ही निकाले गए। आखरी lifeboat 02:05 बजे रवाना हुई और 2:20 पर जहाज बीच से टूट गया। कभी ना डूबने वाला टाइटेनिक मात्र 3 घंटे में ही डुब गया। जो लोग तैरना जानते थे वो पानी में कूद गये लेकिन पानी का टेंपरेचर -2°C होने से वे ठंड से मारे गए। ऐसा कहा जाता है की कैप्टन स्मिथ जहाज के साथ डूब गया या खुद को गोली मार लिया।

लगभग 3:30 AM में Carpathian जहाज पहुंचता है और lifeboat की यात्रियों को बचा ले जाता है।

टाइटैनिक के डूबने के कारण

  • टाइटैनिक के टकराने से ठीक 1 घंटे पहले SS Californian जहाज ने ही टाइटैनिक को iceberg के लिए सूचना दिया था। जो उससे केवल 37 किलोमीटर की दूरी पर था। कैलिफोर्नियन ने सूचना देने के बाद 11:15 मैं अपना रेडियो ऑफ कर देता है। टाइटेनिक पर जब रॉकेट उड़ाए जा रहे थे तो कैलिफोर्नियन के मेंबर्स ने कैप्टन को सूचना दी कि कुछ गड़बड़ हो रहा है लेकिन कैप्टन ने यह कह कर मना कर दिया कि उसमें अमीर लोग है और वे पार्टी कर रहे हैं। वरना लोगों की जान बचा जा सकता था।
  • Lifeboat की कमी – टाइटेनिक में लगभग 35 से 40 lifeboat रखे जाना चाहिए थे लेकिन केवल 20 ही मौजूद थे।
  • Safety ignorance – कैप्टन के द्वारा सेफ्टी स्टैंडर्ड को बार-बार ignore किया गया। लगातार रास्ते में iceberg होने के सूचना को ignore किया गया और चेतावनी के बाद भी speed को कम नहीं किया गया।
  • कुछ जानकारों का मानना था की टाइटैनिक white star line कंपनी के द्वारा कैप्टन पर या दबाव बनाया गया था की स्पीड को कम नहीं करना क्योंकि यह अभी तक का सबसे महंगा जहाज है और जल्दी पहुंचाने के मामले में पिछली जितनी भी जहाजे थी सब के रिकॉर्ड को तोड़ना है।

टाइटेनिक को ढूंढने में लगभग 75 साल लग गए। सितंबर 1985 में टाइटैनिक को ढूंढा गया जो समुंद्र की सतह से लगभग 4 किलोमीटर नीचे था एवं दो टुकड़ों में बटा हुआ था जिसके बीच की दूरी लगभग 600 मीटर थी। समय के साथ टाइटेनिक के मेटल्स तितर-बितर हो गए थे और काफी कम हो गए थे। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है की 2030 आते-आते टाइटेनिक के पुर्जे पूरी तरह गायब हो जाएंगे।

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