शादी सिर्फ दो शरीरों का मिलन ही नहीं बल्कि जिम्मेदारियों का बटवारा भी होता है। शादी के बाद कानून के द्वारा बहुत से अधिकार भी दिए गए हैं। जैसे आप बैंक में ज्वाइंट अकाउंट खुलवा सकते हैं, किसी बच्चे को गोद ले सकते हैं, जॉइंट अकाउंट से संपत्ति खरीद सकते हैं आदि, तरह-तरह के अधिकार दिए गए हैं।
भारत में लगभग छः तरह के धर्मों के लोग निवास करते हैं। सभी धर्मों के विवाह सम्बंधित रीति रिवाज अलग-अलग होते हैं और सरकार उन विवाहों को कानूनी मान्यता देती है। लेकिन क्या होगा अगर किसी पारसी को किसी सिख से शादी करनी हो, किसी मुस्लिम को ईसाई से शादी करनी हो, किसी हिंदू को जैन से शादी करने हो या फिर किसी को अंतरजातीय विवाह करना हो। इस स्थिति में भारत में एक कानून है जो इन शादियों को मान्यता देता है। यह कानून “विशेष विवाह अधिनियम (special marriage act) 1954 है।
समलैंगिक विवाह
स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के सेक्शन 4 में यह अधिनियमित है की कोई भी दो इंसान आपस में शादी कर सकता है। इसी सेक्शन 4 को लेकर LGBTQ( lesbian, gay, bisexual, transgender, queer) समुदाय वाले लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते है और दलील देते हैं कि उनकी शादी को कानूनी मान्यता प्रदान की जाए। लेकिन विशेष विवाह अधिनियम 1954 के सेक्शन 4C में यह उल्लेखित है की दो इंसानों में एक बायोलॉजिकल पुरुष और एक बायोलॉजिकल स्त्री होना अनिवार्य है। LGBTQ समुदाय वाले लोग सेक्सन 4 के clause C के निरस्त्रीकरण की मांग करते हैं जिससे उनकी आपस में शादी valid हो जाए और विवाह संबंधित सारे कानूनी अधिकार प्राप्त हो जाए।
कैसे होगा बच्चे का जन्म
दुनिया भर में ‘सेरोगेसी’ यानी किराए की कोख का प्रचलन बढ़ा है। भारत में बच्चे रखने का अधिकार है कानूनी रूप से विवाहित जोड़े के पास है। LGBTQ समुदाय का तर्क है कि सरोगेसी के माध्यम से बच्चे को पैदा किया जा सकता है। समलैंगिक किसी स्त्री को बच्चे पैदा करने हो तो वह डोनर पिता के स्पर्म ग्रहण कर बच्चा पैदा कर सकती हैं वही पुरुष समलैंगिक को बच्चे पैदा करने हो तो वे किसी डोनर मां के किराए की कोख की मदद ले सकते हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में अभी इस मुद्दे पर बहस चल रही है लेकिन सरकार का तर्क है यह पूरी तरह से अमानवीय है इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
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