भारत की जनसंख्या (2023), चीन को कैसे पीछे छोड़ बन गया नंबर वन

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हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था UNFPA यानी स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड पापुलेशन द्वारा एक रिपोर्ट प्रकाशित किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पछाड़कर दुनिया का नंबर वन देश बन गया है। जनसंख्या के मामले में भारत का नंबर वन बनने के भारत के लोग जनसंख्या बढ़ने के कारण, इसके प्रभाव तथा इसके नुकसान के बारे में सोचने लगे हैं।

इस लेख के माध्यम से हम यह जानेंगे कि UNFPA द्वारा राशि प्रकाशित की गई रिपोर्ट के क्या मायने हैं, भारत के जनसंख्या वृद्धि के कारण क्या है तथा इसके फायदे एवं नुकसान क्या क्या है और प्रति 10 वर्ष पर आयोजित की जाने वाली जनगणना की आयोजन में देरी क्यों हो रही है।

UNFPA द्वारा प्रकाशित की गई रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व की जनसंख्या 8,045 मिलियन यानी 8 अरब 45 करोड़ हो गई है जिसमें 15 से 64 आयु वर्ग की जनसंख्या 65 % है तथा 65 वर्ष से अधिक लोगो की जनसंख्या 10 % है।  भारत की जनसंख्या 1428 मिलियन यानी एक अरब 42 करोड़ 80 लाख है वही चीन की जनसंख्या 1425 मिलियन है। चीन की जनसंख्या पिछले साल 2022 में 1448 मिलियन थी जो 2023 मैं घटकर 1425 मिलियन हो गई है। भारत की जनसंख्या में नंबर वन आने का कारण चीन की जनसंख्या में कम होना है।

भारत की जनसंख्या में वृद्धि के कारण

मृत्यु दर और प्रजनन दर में कमी

बीते हुए समय के साथ TFR (total fertility rate) यानी प्रजनन दर में भारी कमी आई है जहां 1992-93 के दौरान 3.4 था वही 2019-20 के दौरान 2.0 हो गई है।

टीएफआर यानी प्रजनन दर वह संख्या होती है जो एक माता अपने जीवन काल में औसत बच्चे पैदा करती है।

मृत्यु दर में कमी

वर्ष 1950 के दौरान मृत्यु दर प्रति 1000 की जनसंख्या पर 22.2% था वही 2007 के दौरान 7.4% देखा गया।

जन्म दर और मृत्यु दर के बीच एक भारी गैप देखा गया जो जनसंख्या में वृद्धि का एक कारण बना।

TFR का प्रतिस्थापन दर से अधिक हो जाना

जितनी संख्या में मृत्यु होती है उन्हें प्रतिस्थापित करने की आवश्यकता होती है इसी को प्रतिस्थापन दर कहते हैं। लेकिन प्रजनन दर गिरने के बावजूद भी जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक प्रतिस्थापन दर 2.1 है और भारत का प्रजनन दर 2.0 है ऐसे में जनसंख्या में कमी होनी चाहिए लेकिन जनसंख्या वृद्धि हो रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत में टोटल फर्टिलिटी रेट 2021-22 के दौरान 2.0 हुआ और इसके पहले 3.4 के आसपास था। एक अनुमान के मुताबिक भारत की जनसंख्या 2050 तक स्थिर होने की संभावना है।

जनसंख्या वृद्धि के फायदे

कार्य बल में वृद्धि

भारत में 68% जनसंख्या 15 से 64 आयु वर्ग के लोगों की है और विश्व के सबसे अधिक युवा आबादी भारत में है। ऐसे में देश में कार्यशील लोगों की संख्या ज्यादा है और हम इसका लाभ आसानी से उठा सकते हैं। एक बड़ी आबादी को प्रोडक्शन चैन में उपयोग करके हम अपनी प्रोडक्टिविटी को ऊंचाई दे सकते हैं और समग्र विकास की संकल्पना कर सकते हैं।

विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या होने के नाते यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल UNSC में अपनी स्थाई सदस्यता का दावा कर सकते हैं।

जनसंख्या वृद्धि के नुकसान

जनसंख्या वृद्धि के काफी सारे नुकसान भी देखने को मिलते हैं। जनसंख्या वृद्धि होने पर सरकार को मूलभूत सुविधाएं जैसे पानी, बिजली, भोजन, आवास आदि प्रदान करने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। सारे लोगों को आवास प्रदान करने हेतु जंगलों की कटाई करने पर सकती है ऐसे में पर्यावरण को भारी नुकसान हो सकता है।

जनगणना आयोजन में देरी क्यों?

यूनाइटेड नेशंस द्वारा अप्रत्यक्ष एवं अनुमानित आंकड़े जारी किए गए हैं। जिसके आधार पर हम नीति निर्माण एवं लोक कल्याण योजनाओं का संकलन नहीं कर सकते हैं।

पिछली जनगणना का आयोजन 2011 में किया गया था जिसके अनुसार देश की कुल आबादी 121 करोड़ थे। केंद्र सरकार द्वारा हर 10 वर्ष पर जनगणना का आयोजन किया जाता है। 2021  में कोरोनावायरस के प्रभाव के कारण जनगणना का आयोजन नहीं किया जा सका लेकिन अब महामारी खत्म हो गई है फिर भी प्रक्रिया शुरू करने में विशेष प्रयास नहीं दिख रहा है। जनगणना को पूरा करने में लगभग 2 साल लगते हैं।

जनगणना में देरी का प्रभाव

अगर हमारे पास जनसंख्या के उचित आंकड़े नहीं है तो इससे देश के विकास में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जनगणना से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग नीति निर्माण एवं लोक कल्याण योजनाओं को लागू करने में किया जाता है ऐसे में अगर हमारे पास उचित जनसंख्या का ब्यौरा नहीं है तो देश के विकास एवं नीति निर्माण में असक्षम साबित होंगे।

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