एक समय पूरी धरती पर डायनासोर का राज था। डायनासोर ने लगभग 14 करोड़ सालों तक पृथ्वी पर राज किया। डायनासोर कि कई हजार प्रजातियां विद्यमान थी जिनमें कुछ शाकाहारी थे, कुछ मांसाहारी थे, कुछ शांत स्वभाव के थे और कुछ बहुत ही हिंसक और खतरनाक थे। उस समय के डायनासोर पृथ्वी के सबसे सफल जीव है। लेकिन कौन सी ऐसी घटना घटी है जिससे करोड़ों साल धरती पर राज करने वाले डायनासोर पूरी तरह खत्म हो गये। इसके पीछे की क्या कहानी है, आइए इस ब्लॉग के माध्यम से पूरे विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।
डायनासोर के अंत की शुरुआत
लगभग 6.5 करोड़ साल पहले धरती पर मौसम सामान्य था। सारी प्रजातियां आराम से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। कुछ समय डायनासोर पृथ्वी पर सबसे अधिक पाए जाने वाले जीव थी। लेकिन शायद उनकी किस्मत में यह पहले से ही मंजूर था की उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
बात कुछ ऐसी थी एक छोटा क्षुद्रग्रह का टुकड़ा जो सुदूर अंतरिक्ष से आ रहा था। इसकी संभावना थी की यह चंद्रमा से टकराएगा लेकिन आने के क्रम में मंगल और बृहस्पति के बीच बने एक बड़े क्षुद्रग्रह से टकरा गया। मंगल और बृहस्पति के बीच का क्षुद्रग्रह पृथ्वी की तरफ बढ़ने लगा जिसका व्यास 40 किलोमीटर और वजन लगभग 2 ट्रिलियन मीटर था। शुद्र ग्रह के पृथ्वी से टकराने से 35000 डिग्री सेल्सियस ऊर्जा वाला विस्फोट हुआ जो 10 हाइड्रोजन बम के विस्फोट के समान था। विस्फोट के बाद धरती से लाखों टन धातु अंतरिक्ष में फैल गया और लगभग 180 किलोमीटर चौड़ा एवं 20 किलोमीटर गहरा गड्ढा बन गया। शुद्र ग्रह के टकराने के लगभग 16 मिनट बाद 11.1 तीव्रता वाले भूकंप तरंगें उठने लगी, समुद्र में सुनामी उठने लगी एवं सभी तरंगीय ज्वालामुखी सक्रिय हो गई और एक के बाद एक ताबड़तोड़ विस्फोट होने लगे चारों ओर आग और पानी फैल गया। मात्र 40 मिनट में तापमान 100 डिग्री सेल्सियस और पहुंच गया एवं 90 मिनट बाद तापमान 200 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया इसी क्रम में धरती के लगभग 90% प्रजातियां नष्ट हो गई। कुछ बड़ी प्रजातियां जैसे डायनासोर तो बच गये लेकिन खाने-पीने के अभाव में मारे गए। बची हुई 10 परसेंट प्रजातियों में वैसे जीव है जिनका वजन 30 किलोग्राम से कम था। इसमें कुछ रहने वाला जीवित है तो कुछ बंदर की जैसी प्रजाति वाले जीव। फिर मौसम सामान्य हो गया और बचे हुए जीव अपना गुजर-बसर करने लगे।
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फिर लगभग 4.7 करोड़ साल पहले बदलाव शुरू हो गया। टेक्टोनिक प्लेट में हलचल शुरू हुई और भारतीय उपमहाद्वीप एवं एशियन महाद्वीप के टेक्टोनिक प्लेटों के टकराने से हिमालय पर्वतमाला उभर कर सामने आया जिस पर विश्व की सबसे ऊंची शिखर श्रेणी स्थित है। धीरे-धीरे मौसम का पैटर्न बदलने लगा और मौसम ठंडा होने लगा। 3.5 करोड़ साल पहले ग्लोबल कूलिंग हुई और घास के मैदान बढ़ने लगे एवं जंगल कम होने लगे। तब ऐसे जानवर सामने आए जो खुले मैदान में रहने के लिए उपयुक्त हो गए और कुछ ऐसे जानवर भी थे जो दूसरे जानवरों को खाने पर निर्भर हो गए। 1 करोड़ों साल पहले पृथ्वीवर रूप लेने लगी जिससे आज हम देख रहे हैं, महसूस कर रहे हैं और जी रहे हैं।
लगभग 40 लाख साल पहले टेक्टोनिक प्लेटों में एक बार फिर हलचल हुई और अफ्रीका के पूर्वी हिस्से में नई पर्वत श्रेणियां “ईस्ट अफ्रीकन रिफ्ट वैली” का निर्माण हुआ। इस पर्वत श्रेणी के निर्माण के बाद मौसमी हवाई बंद हो गई और बारिश बंद हो गए। अफ्रीका के इन्हीं जंगलों में रहते थे हमारे दूर के रिश्तेदार “the great apps” जिन्हें pierolapithecus:pierola कहा जाता है। यहीं से शुरू होती है मानव जीवन के उत्पत्ति की कहानी। Pierola पेड़ों पर रहते थे, फलों को खाते थे एवं वजन ज्यादा होने के कारण खुद नहीं पाते थे तो वे पेड़ों पर झूलते रहते थे। कभी-कभी दो पैरों पर खड़े होकर चल भी सकते थे। चलने की यह कला हमारे आम धारणा के उलट जमीनों पर नहीं बल्कि कहानियों पर विकसित हुई। दो पैरों पर चलना इंसानों की नहीं इन apes की खोज थी।
आगे चलकर जलवायु परिवर्तन और जगह बदलाव के चलते हैं ये great apes मैं बदल गए और चिंपैंजी एवं गोरिल्ला में विकसित हुए। कुछ इंसानों में बदलना शुरू हुए। वे पूरे अफ्रिका में फैले हुए थे लेकिन बारिश बंद हो जाने के कारण यहां के जंगल सुख गए और ये apes खाने की समस्या से जुझने लगे। भोजन की तलाश में पेड़ों से उतर कर अब जमीन पर चलने लगे।
अर्डीपिथेकस रामिडस (Ardipithecus Ramidus)
ये हमारे पूर्वज थे जिन्होंने जमीन पर मानव इतिहास का पहला कदम रखा और आज हम इन्हीं के बदौलत चांद पर कदम रख पाए हैं। इनका दिवाकर संतरे इतना बड़ा था और लंबाई लगभग 4 फीट के आसपास थी। यह हमारे वंश के सीधे चलने वाले पहले जीव थे। कई हजार सालों के विकास के दौरान यह दो पैरों पर चलना सीख गए और घूम घूम कर भोजन तलाशने की प्रक्रिया में लग जाए और विकास की प्रक्रिया चलती रही।
होमो हैबिलिस (Homo Habilis)
विकास के इस दौर में लगभग 23 लाख साल पहले हमारे पूर्वजों ने पत्थरों से बने हथियार का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। पत्थरों से औजार बनाएगा जिनमें और हथौड़ा प्रमुख था। हथौड़े के उपयोग ने हमारे अंगूठे और अंगुलियों को मजबूती प्रदान की जिससे हम कुशलता से इसके इस्तेमाल में सक्षम हुए और सामूहिक रूप से शिकार पर जाने लगे इसके दौरान हमारे दिमाग के आकार में थोड़ी वृद्धि हुई।
होमो इरेक्टस (Homo Erectus)
आग की खोज ने मानव जाति के विकास में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया। आग का प्रयोग रोशनी करने में, जानवरों को भगाने में एवं भोजन बनाने में होने लगा और साथ ही साथ दिमाग में भी वृद्धि होने लगा क्योंकि ऊर्जा का एक बड़ा भाग भोजन को पचाने में खर्च हो जाता था लेकिन आग के अविष्कार के बाद पके हुए भोजन खाने से कम ऊर्जा की जरूरत पड़ती और बाकी ऊर्जा से दिमाग विकसित होने लगा।
2 लाख साल पहले इंसानों ने अपना रूप ले लिया। लैरिंग्स जो गले के ऊपर थी, नीचे आ गई और हम जटिल आवाजें निकालने लगे।
होमोसेपियन (Homo sapiens)
लगभग 1लाख साल पहले इंसान कहीं भी आ जा सकता था, हाथ फुर्तीला हो गए थे और पुराने हथियार भी थे जिसके बल पर शिकार आसान हो गया साथ ही साथ बात करने और आग पर काबू पाने की कला भी हमने सीख ली।
इन सभी बदलाव के बाद इंसान विचरण करने लगा और वे 1 महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में जाने लगा। 50 हजार साल पहले वे चाइना और ऑस्ट्रेलिया एवं 30 हजार साल पहले यूरोप आदि जगहों पर फैल गये।
लगभग 30 हजार साल पहले से इंसानों के दिमाग काफी विकसित हुए। समय के साथ वे समझदार होते गए, बस्तियां बसाना शुरू कर दिए एवं परिवार अस्तित्व में आने लगा। इंसानों का हुलिया, आकार, त्वचा, बाल आदि जलवायु के हिसाब से बदलता गया। इंसानों ने जानवर पालना शुरू कर दिया, शहर एवं कस्बे का निर्माण होने लगा और सभ्यता एवं संस्कृति का जन्म हुआ। आज हम विज्ञान, गणित और तकनीक का इस्तेमाल करके पूरी तरह खुद को विकसित कर लिए हैं। विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में हमने इतनी तरक्की कर लिया है कि हमें अब यह सवाल नया नहीं लगता कि हम कौन हैं और कहां से आए।
उम्मीद है कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी और आपके लिए हेल्पफुल रहेगी।
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